
(दुर्गेश कुमार)कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे डाक्टर इस समय पास रहकर भी परिवार से दूर हैं। मरीज उदास न हों, इसलिए उनके लिए हंसते हैं। हौंसला बढ़ाने के लिए उनसे मुस्कुरा कर बात करते हैं। एनआईटी-3 नंबर स्थित ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कोरोना की लड़ाई में ये डॉक्टर फ्रंट पर हैं। इनमें से एक का नाम है डॉ. सोनिया खट्टर। ये एसोसिएट प्रोफेसर हैं और कोरोना की जांच के लिए बनाई गई लैब में सेवाएं दे रही हैं। दूसरे हैं डॉक्टर निखिल वर्मा, ये असिस्टेंट प्रोफेसर के साथ अस्पताल में कोविड-19 के नोडल अधिकारी हैं। तीसरी हैं डॉक्टर प्रीति भाटी, ये जूनियर रेजिडेंट हैं और कोरोना मरीजों की देखरेख कर रही हैं।
हर हाल में कोरोना से जीतना है: डॉ. सोनिया
मैं ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एसोसिएट प्रोफेसर चारू जैन व अन्य के साथ कोरोना वायरस की जांच के लिए बनाए गए टेस्ट लैब में सेवा दे रही हूं। लैब में शुरूआत में तो जांच के लिए 30 से 35 सैंपल ही आते थे। लेकिन अब यह आंकड़ा 200 तक पहुंच रहा है। सैंपल की जांच के बाद रिपोर्ट तैयार करना, विभिन्न एजेंसियों को इसकी समुचित जानकारी देना आदि में कब वक्त निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। इस समय मैं महज 3 घंटे की भी नींद ले लूं तो बहुत है। लेकिन हिम्मत नहीं टूट रही है । एक ही मकसद है, हर हाल में कोरोना से जीतना।
एक महीने से अस्पताल में ही हूं: डॉ. प्रीति
मैं ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर हूं। घर फरीदाबाद में ही है। सुरक्षा कारणाें से एक महीने से घर नहीं जा रही। घर में बुजुर्ग दादी से बहुत प्यार है। जब कभी फुर्सत मिलती है, वीडियो कॉल पर बात कर लेती हूं। मम्मी-पापा, भाई आदि सब से फोन पर ही बात कर रही हूं। एक शहर में रहते हुए भी उनसे दूर हूं। क्योंकि यहां कोरोना से जंग जो लड़ना है। यह मुश्किल की घड़ी है। अस्पताल में कोरोना के मरीज परेशान न हों, इसलिए उनकी हर छोटी से छोटी बातों का ख्याल रखा जा रहा है। मरीजों काे हौसला दिया जा रहा है।
मरीजों की हिम्मत टूटने नहीं देते: डॉ. निखिल
मैं ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में असिस्टेंट प्रोफेसर हूं। कोविड-19 अस्पताल का नोडल अधिकारी हूं। जब से ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को कोविड-19 अस्पताल घोषित किया गया है। सभी स्टाफ की जिम्मेदारी बढ़ गई है। अस्पताल में कोरोना के 13 मरीज भर्ती हैं। उनके चेहरों पर कोरोना का डर न बैठे, इसलिए वार्ड में पहुंचते ही उनसे हंसकर बात करता हूं। यह सब उनका हौसला बढ़ाने के लिए करता हूं। जिससे वे जल्द ठीक हो जाएं। कैंपस में ही पूरा परिवार रह रहा है। ड्यूटी ऑफ होने के बाद घर पहुंचता हूं।
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